Shayari

Mirza Ghalib Shayari in Hindi | मिर्जा ग़ालिब की शायरी

दोस्तों स्वागत है आपका KRDigitalMakers की एक और नई ब्लॉग पोस्ट मे. आज हम आपके लिए Mirza Ghalib Shayari in Hindi, Ghalib Ki Shayari, ग़ालिब की शायरी की बेहतरीन कलेक्शन लेके आये है। दोस्तों आप भी अगर शायरी पढ़ना पसंद करते है तो अपने दुनिया के मशहूर शायर ग़ालिब का नाम जरूर सुना होगा, उनकी शायरी कभी न कभी ज़रूर पढ़ी होगी वह व्यक्ति अपनी शायरी से सभी का दिलो पर राज करते थे.

Mirza Ghalib Ki Shayari

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।

मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे
हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला ज़हर
जो करे असर बरी देर तक।

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.

Ghalib Shayari

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं.

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है.

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !

बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।

हमारे शहर में गर्मी का यह आलम है ग़ालिब
कपड़ा धोते ही सूख जाता है
पहनते ही भीग जाता है.

Mirza Ghalib Romantic Shayari In Hindi

ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है।

हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर – गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।

हम भी दुश्मन तो नहीं है अपने
ग़ैर को तुझसे मोहब्बत ही सही.

Mirza Ghalib Shayari
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता.

था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था.

ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे.

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गुनाह करके कहां जाओगे ग़ालिब
ये जमीं ये आसमा सब उसी का है.

हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन
दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है.

Ghalib Shayari On Zindagi
मौत पे भी मुझे यकीन है
तुम पर भी ऐतबार है
देखना है पहले कौन आता है
हमें दोनों का इंतज़ार है.

जिसे “मैं “की हवा लगी
उसे फिर न दवा लगी न दूआ लगी.

चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श* हो हो कर पाएमाल^ भी !!

फ़िक्र–ए–दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर–ए–जानाँ किए हुए !!

Ghalib Shayari On Love
अर्ज़–ए–नियाज़–ए–इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा.

मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!

तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है.

न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई !!

रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!

Mirza Ghalib Sad Shayari
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।

भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।

Mirza Ghalib 2 Line Shayari
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना।
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।।

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता।
वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है।।

कहाँ मयख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब‘ और कहाँ वाइज़।
पर इतना जानते है कल वो जाता था कि हम निकले।।

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज।
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।।

तुम अपने शिकवे की बातें, ना खोद खोद के पूछो,
हज़र करो मिरे दिल से, कि उस में आग दबी है।

Famous Hindi Shayari Of Mirza Ghalib
तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..

तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..

मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!

भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया.

क़ैद में है तेरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद
हां कुछ इक रंज गरां बारी-ए-ज़ंजीर भी था.

Mirza Ghalib Biography in Hindi | मिर्ज़ा ग़ालिब जीवनी

मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान उर्फ ​​”गालिब” उर्दू और फारसी भाषाओं के महान कवि या शायर थे। उन्हें उर्दू भाषा का अब तक का सबसे महान कवि माना गया और उन्हें भारतीय भाषा में फ़ारसी कविता के प्रवाह को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी दिया जाता है। ग़ालिब द्वारा लिखे गए पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, उर्दू लिपि के महत्वपूर्ण दस्तावेज भी माने जाते हैं। गालिब को भारत और पाकिस्तान में एक प्रमुख कवि के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्हें दबिर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला की उपाधि मिली। मिर्ज़ा, जिन्होंने कलम नाम ग़ालिब के तहत लिखा था, मुगल युग के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी कवि भी थे। आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में रहने वाले ग़ालिब को ज्यादातर उनकी उर्दू ग़ज़लों के लिए याद किया जाता है।

Mirza Ghalib Birth | मिर्जा गालिब का जन्म
मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 को काला महल, आगरा में एक सैन्य परिवार में मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग और इज्जत-उत-निसा बेगम के यहाँ हुआ था। वह पहले लखनऊ के नवाब और बाद में हैदराबाद के निज़ाम द्वारा सफल हुए। हाय तुर्की मूल का था। पैर का अंगूठा जाल 5 साल का था, राजस्थान के अलवर शहर में ‘एक युद्ध’ में उसकी मृत्यु हो गई।

Mirza Ghalib Education | मिर्ज़ा ग़ालिब की शिक्षा
मिर्ज़ा ग़ालिब की पहली भाषा उर्दू थी, लेकिन घर में फ़ारसी और तुर्की भी बोली जाती थी। उन्होंने कम उम्र में फारसी और अरबी में शिक्षा प्राप्त की। ग़ालिब फारसी-अरबी लिपि में लिखते थे जो आधुनिक उर्दू लिखते थे, लेकिन उनकी भाषा को अक्सर “हिंदी” कहा जाता है।

जब ग़ालिब किशोर थे तब ईरान से एक परिवर्तित मुस्लिम पर्यटक आगरा आया था। वे दो साल तक ग़ालिब के घर में रहे और ग़ालिब फ़ारसी, अरबी, दर्शन और तर्कशास्त्र पढ़ाते रहे। हालाँकि ग़ालिब ने फ़ारसी को उर्दू के लिए पसंद किया, लेकिन उनकी प्रसिद्धि उर्दू में उनके लेखन पर टिकी हुई है।

Mirza Ghalib Early Life | मिर्जा गालिब का शुरुआती जीवन
ग़ालिब साहब के पिता की मृत्यु के बाद, उनका पालन-पोषण उनके चाचा मिर्जा नसरुल्ला बेग खान ने किया, लेकिन 1806 में नसरुल्ला एक हाथी से गिर गए और गंभीर चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई। और बाद में वह दिल्ली चला गया। ग़ालिब का प्रारंभिक जीवन पिता की मृत्यु के बाद मिलने वाली पेंशन पर ही बीता।

अपनी पेंशन के सिलसिले में उन्हें कलकत्ता तक का लंबा सफर तय करना पड़ा, जिसका जिक्र उनकी ग़ज़लों में कई जगहों पर मिलता है।

मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि उन्हें दो चीज़ों की कमज़ोरी थी – शराब पीना और जुआ। ये दोनों गलतियाँ जीवन भर उनके साथ रहीं।

हालाँकि उन दिनों जुए को अपराध माना जाता था, लेकिन ग़ालिब ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। वास्तव में वे स्वयं कहते थे कि वे सच्चे अर्थों में कट्टर मुसलमान नहीं थे !

विडंबना यह है कि तब किसी ने उन्हें महत्व नहीं दिया और प्रसिद्धि बहुत बाद में मिली। आज वह उर्दू के सबसे विपुल और व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले कवि हैं।

Royal Title | शाही खिताब
1850 में, सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने मिर्ज़ा ग़ालिब को “दबीर-उल-मुल्क” और “नज़्म-उद-दौला” की उपाधि से सम्मानित किया। बाद में उन्हें “मिर्जा नोशा” की उपाधि भी मिली। वह सम्राट के दरबार में एक महत्वपूर्ण दरबारी था। उन्हें बहादुर शाह जफर द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र राजकुमार फकर-उद-दीन मिर्जा का ट्यूटर भी नियुक्त किया गया था। वह एक समय मुगल दरबार के शाही इतिहासकार भी थे।

मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर बनी फिल्में, टीवी शो और मंच नाटक
इस साहित्यिक प्रतिभा पर भारत और पाकिस्तान दोनों में कई फिल्में और टीवी श्रृंखलाएं बनाई गई हैं। इतना ही नहीं, देश भर के विभिन्न थिएटर समूहों ने उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन से संबंधित विभिन्न नाटकों का मंचन किया है, जिसमें गालिब के जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाया गया है।

Mirza Ghalib Death | मिर्जा गालिब की मृत्यु
गालिब की मृत्यु 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में उनके घर गालिब में हुई, जिसे अब उनके साहित्यिक कार्यों की प्रदर्शनी के लिए गालिब मेमोरियल में बदल दिया गया है।

गालिब को निजामुद्दीन में लोहारु के नावाब के भाष्य कब्रिस्तान में देबानाया गाया हुआ; उनकी पत्नी, जिनकी एक साल पहले गालिब (15 फरवरी) के दिन मृत्यु हो गई थी, को उनके बैग में दफनाया गया था।

कुछ ही मीटर की दूरी पर 13वीं शताब्दी के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है, जो हमेशा अनुयायियों की एक स्थिर धारा से गुलजार रहती है।

साथ ही दरगाह परिसर के भीतर 13वीं शताब्दी के सूफी संगीतकार और कवि अमीर खुसरो का मकबरा है, जिन्हें ग़ालिब ने फ़ारसी का सबसे बड़ा कवि बताया था।

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